Big Breaking:-एम्स ऋषिकेश में 2.73 करोड़ का घोटाला उजागर, पूर्व निदेशक और 02 सहयोगियों पर सीबीआइ का शिकंजा

फाइलें गायब कर लीं, अधूरा छोड़ा गया CCU, मरीजों के नाम पर खेला करोड़ों का खेल

एम्स ऋषिकेश में 2.73 करोड़ रुपये का घोटाला उजागर हुआ है, जिसमें संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ. रविकांत, तत्कालीन एडिशनल प्रोफेसर रेडिएशन ऑन्कोलॉजी डॉ. राजेश पसरीचा और तत्कालीन स्टोर कीपर रूप सिंह पर सीबीआइ ने शिकंजा कसा है।

आरोप है कि इन अधिकारियों ने ठेकेदार के साथ मिलकर कोरोनरी केयर यूनिट (सीसीयू) की स्थापना में करोड़ों की हेराफेरी की और घोटाले को छुपाने के लिए संबंधित फाइलें गायब कर दीं।

26 मार्च 2025 को सीबीआइ की एंटी करप्शन टीम ने एम्स के कार्डियोलॉजी विभाग पर छापा मारा। जांच में सामने आया कि 16 बिस्तरों वाले सीसीयू की स्थापना से जुड़ी निविदा फाइल लंबे समय से गायब थी। मौके पर निरीक्षण के दौरान पाया गया कि सीसीयू अधूरा और गैर-कार्यात्मक है। कई उपकरण घटिया क्वालिटी के थे, जबकि कई बिल्कुल ही नदारद मिले।

स्टॉक रजिस्टर में 200 वर्ग मीटर आयातित दीवार पैनल, 91 वर्ग मीटर आयातित छत पैनल, 10 मल्टी पैरा मॉनिटर और एयर प्यूरीफायर दर्ज थे, लेकिन इनकी वास्तविक आपूर्ति नहीं हुई थी। इसके बावजूद आरोपियों ने ठेकेदार को 2.73 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया।

साफ है कि यह पूरा मामला संगठित षड्यंत्र का हिस्सा था, जिसमें एम्स अधिकारियों ने अपने पद का दुरुपयोग कर ठेकेदार कंपनी मेसर्स प्रो मेडिक डिवाइसेस को अनुचित लाभ पहुँचाया।

सीबीआइ ने इस मामले में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 120-बी (आपराधिक साजिश), 420 (धोखाधड़ी), 468 और 471 (जालसाजी और फर्जी दस्तावेज़ों का प्रयोग) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7, 13(1)(d) और 13(2) के तहत मुकदमा दर्ज किया है। इन धाराओं के तहत आरोप सिद्ध होने पर दोषियों को 7 से 10 साल तक की कठोर सजा और जुर्माना हो सकता है।

इस घोटाले ने न केवल सरकारी धन की लूट को उजागर किया है बल्कि मरीजों की जान से भी खिलवाड़ किया है। जिस सीसीयू में गंभीर हृदय रोगियों का इलाज होना था, उसे अधूरा छोड़कर करोड़ों की बंदरबांट कर दी गई। प्रतिष्ठित संस्थान एम्स की साख पर इस घोटाले ने गहरी चोट पहुंचाई है। अब देशभर की निगाहें सीबीआइ की आगे की जांच और अदालत की कार्रवाई पर टिकी हैं।

स्वास्थ्य सेवाओं से ज्यादा घोटालों से जुड़ रहा एम्स ऋषिकेश का नाम


अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश, जिसे कभी उत्तराखंड और आसपास के राज्यों के लिए उच्च स्तरीय स्वास्थ्य सुविधाओं का केंद्र माना गया था, आज घोटालों के कारण सुर्खियों में है। प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के तहत 2004 में इसकी नींव रखी गई थी और 2012 से मरीजों को यहां सेवाएं मिलने लगीं। लेकिन बीते कुछ वर्षों में स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धि से ज्यादा एम्स का नाम करोड़ों के घोटालों से जुड़ रहा है। अब तक सीबीआइ तीन बड़े मामलों में मुकदमे दर्ज कर चुकी है।

सबसे ताजा मामला 2.73 करोड़ रुपये के घोटाले का है, जिसमें पूर्व निदेशक डॉ. रविकांत, तत्कालीन प्रोफेसर डॉ. राजेश पसरीचा और स्टोर कीपर रूप सिंह को आरोपी बनाया गया है। आरोप है कि इन्होंने ठेकेदार के साथ मिलीभगत कर कार्डियोलॉजी विभाग के लिए कोरोनरी केयर यूनिट की स्थापना में अनियमितताएं कीं, अधूरी आपूर्ति का भुगतान किया और संबंधित फाइलें तक गायब करा दीं। सीबीआइ ने आरोपियों के खिलाफ आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया है।

इससे पहले 2022 में एम्स ऋषिकेश में स्वीपिंग मशीन और केमिस्ट स्टोर के आवंटन में करीब 4.41 करोड़ रुपये का घोटाला उजागर हुआ था। सीबीआइ की जांच में पाया गया कि निविदा प्रक्रिया में नियमों को दरकिनार कर अयोग्य कंपनी को टेंडर दिया गया और करीब दो करोड़ रुपये की पुरानी मशीन खरीदी गई, जो मुश्किल से 124 घंटे ही चली। वहीं, मेडिकल स्टोर का आवंटन भी टेंडर प्रक्रिया के विपरीत त्रिवेणी सेवा फार्मेसी को दिया गया।

इस मामले में माइक्रोबायोलॉजी विभाग के तत्कालीन प्रोफेसर बलराम जी ओमर, एनाटॉमी विभाग के प्रोफेसर बृजेंद्र सिंह, सहायक प्रोफेसर अनुभा अग्रवाल, प्रशासनिक अधिकारी शशिकांत और लेखाधिकारी दीपक जोशी समेत नौ लोगों पर मुकदमा दर्ज कर चार्जशीट दाखिल की जा चुकी है।

घोटालों की इस कड़ी में तीसरा मामला उपकरण खरीद से जुड़ा है। अगस्त 2023 में सीबीआइ ने एम्स ऋषिकेश में उन्नत वेसल सीलिंग उपकरणों की खरीद में 6.57 करोड़ रुपये की हेराफेरी का मुकदमा दर्ज किया। जांच में सामने आया कि एम्स ने 2019 में उपकरणों की खरीद के लिए टेंडर प्रक्रिया चलाई और करीब 54 लाख रुपये प्रति यूनिट की दर से सात मशीनें खरीदीं, जबकि पहले यही उपकरण 19.90 लाख रुपये में उपलब्ध थे।

इतना ही नहीं, करोड़ों की कीमत से खरीदे गए इन उपकरणों का तीन साल तक उपयोग ही नहीं किया गया। इस मामले में माइक्रोबायोलॉजी विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ. बलराम जी ओमर समेत दिल्ली और राजस्थान की कई कंपनियों और उनके साझेदारों को आरोपी बनाया गया है।

तीन मुकदमों के इन खुलासों ने साफ कर दिया है कि एम्स ऋषिकेश में स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने की बजाय भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी हो चुकी हैं। करोड़ों के घोटालों ने न केवल संस्थान की साख को धूमिल किया है बल्कि उन मरीजों की उम्मीदों को भी तोड़ा है, जिनके लिए एम्स का निर्माण हुआ था। अब सवाल यह है कि इन मामलों में दोषियों को कब तक कठोर सजा मिलेगी और क्या कभी एम्स का नाम स्वास्थ्य सेवाओं के लिए ही याद किया जाएगा या घोटालों की काली छाया यूं ही हावी रहेगी।

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