Big Breaking:-उत्तराखंड में दवाओं का बड़ा खुलासा! हरिद्वार–देहरादून–उधमसिंह नगर की 44 दवाएं फिर फेल — दवा उद्योग पर बड़ा सवाल

उत्तराखंड में दवाओं का बड़ा खुलासा! हरिद्वार–देहरादून–उधमसिंह नगर की 44 दवाएं फिर फेल — दवा उद्योग पर बड़ा सवाल

देश में दवाओं की गुणवत्ता को लेकर चिंता लगातार बढ़ती जा रही है। मध्य प्रदेश में एक सिरप पीने से बच्चों की मौत के बाद से पूरा देश दवाओं की सुरक्षा को लेकर सख्त हुआ है। लेकिन अफसोस, इतने बड़े हादसे के बावजूद दवाओं की गुणवत्ता में सुधार दिख नहीं रहा।


इसी बीच केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने अक्टूबर का ड्रग अलर्ट जारी किया, जिसमें 211 दवाएं नॉन-स्टैंडर्ड (NSQ) और 5 दवाएं नकली घोषित की गई हैं।

इन दवाओं में सर्दी-जुकाम, दिल के रोग, कैंसर, TB, मधुमेह, बीपी, दमा, दर्द, बुखार, संक्रमण और एनीमिया जैसी गंभीर बीमारियों में इस्तेमाल होने वाली दवाएं शामिल हैं।

देशभर में चिंता की लहर है, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा इस बार उत्तराखंड की हो रही है—क्योंकि यहां से लगातार बड़ी संख्या में दवाएं फेल हो रही हैं।

उत्तराखंड की 44 दवाएं फेल — सबसे ज्यादा झटका हरिद्वार को

CDSCO की रिपोर्ट के अनुसार:

✔ हरिद्वार की 24 दवाएं फेल

✔ देहरादून की 13 दवाएं फेल

✔ उधमसिंह नगर की 7 दवाएं फेल

उत्तराखंड देश की बड़ी फार्मा हब मानी जाती है। हरिद्वार, देहरादून और उधमसिंहनगर में बनी दवाएं न सिर्फ पूरे देश में, बल्कि विदेशी बाजारों तक जाती हैं। लेकिन पिछले 6–8 महीनों से लगातार उत्तराखंड की दवाओं के सैंपल फेल हो रहे हैं। यह प्रदेश की फार्मा इंडस्ट्री पर बड़ा सवाल है—क्या यहां गुणवत्ता पर समझौता हो रहा है?

हरिद्वार — सबसे ज्यादा फेल, सबसे ज्यादा खतरे में!

इस बार सबसे खराब स्थिति हरिद्वार की रही है।
सिडकुल और समीप के औद्योगिक क्षेत्रों में सैकड़ों दवा कंपनियां चलती हैं, जिनसे बड़े-बड़े अस्पतालों और सरकारी संस्थानों में दवाएं सप्लाई होती हैं। लेकिन अक्टूबर में लिए गए सैंपलों में 24 दवाएं फेल मिलीं।

फेल होने के कारण थे:

  • दवा में सक्रिय तत्व (API) तय मात्रा से कम
  • दवा का रंग और फॉर्मूलेशन गलत
  • घुलनशीलता ठीक नहीं
  • दवा की प्रभावशीलता संदिग्ध

स्वास्थ्य विभाग अब हरिद्वार की कंपनियों पर विशेष नजर रख रहा है। कई यूनिट्स को नोटिस भेजे जा चुके हैं और कुछ कंपनियों पर सख्त कार्रवाई की तैयारी भी है।

हरिद्वार में बार-बार दवाएं फेल होना सिर्फ लोकल मुद्दा नहीं—देशभर की सप्लाई को प्रभावित कर सकता है।

देहरादून — राजधानी भी सुरक्षित नहीं, 13 दवाएं फेल

राजधानी देहरादून में स्थित फार्मा यूनिट्स से भेजी गई 13 दवाएं भी जांच में फेल हो गईं।
यह चिंता इसलिए ज्यादा है क्योंकि देहरादून से बड़ी मात्रा में दवाएं सरकारी अस्पतालों और अन्य राज्यों में सप्लाई होती हैं।

अधिकारियों के अनुसार कई दवाओं में:

  • या तो कम तत्व मिले
  • या ज्यादा पाए गए
  • या फॉर्मूलेशन तय मानकों के अनुसार नहीं था

यह स्थिति मरीजों के लिए खतरनाक साबित हो सकती है, क्योंकि ऐसी दवा असर नहीं करती या उल्टा असर कर सकती है।

उधमसिंह नगर — 7 दवाएं फेल

उधमसिंह नगर में दवा उद्योग मजबूत है, लेकिन इस बार यहां से 7 दवाएं फेल हुई हैं।
यह संख्या कम जरूर है, लेकिन यह लगातार तीसरा महीना है जब जिले की दवाएं गुणवत्ता पर खरी नहीं उतरीं।


आखिर दवाएं क्यों फेल हो रही हैं?

विशेषज्ञों ने इन मुख्य कारणों की ओर इशारा किया:

  • सस्ते कच्चे माल का उपयोग
  • लैब में दवा का सही तरीके से परीक्षण नहीं
  • उत्पादन में जल्दबाजी
  • अनुभवी तकनीकी स्टाफ की कमी
  • बड़े ऑर्डरों के चक्कर में गुणवत्ता से समझौता
  • SOP (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसेस) का पालन न करना

जब दवा सही तरीके से बने ही नहीं, तो मरीज तक पहुंचकर проблема पैदा होना तय है।


उत्तराखंड की दवाओं पर देश का भरोसा दांव पर

उत्तराखंड की दवा इंडस्ट्री सालाना हजारों करोड़ का कारोबार करती है।
लेकिन बार-बार दवाएं फेल होने से:

  • देशी बाजार में भरोसा कमजोर होगा
  • विदेशी बाजारों में उत्तराखंड की छवि प्रभावित होगी
  • एक्सपोर्ट पर रोक भी लग सकती है
  • इंडस्ट्री को आर्थिक झटका पड़ सकता है

अब क्या कदम उठा रहे हैं अधिकारी?

स्वास्थ्य विभाग और CDSCO की संयुक्त कार्रवाई:

  • फेल दवाओं के बैच तुरंत बाजार से वापस
  • सभी कंपनियों को नोटिस
  • कई यूनिट्स की औचक जांच
  • नियमों का पालन न करने वाली कंपनियों के लाइसेंस रद्द/निलंबित होने की संभावना
  • आने वाले महीनों में कड़ी मॉनिटरिंग

दवा में खेल, और भुगत रहा है मरीज

हरिद्वार, देहरादून और उधमसिंह नगर से बार-बार इतनी बड़ी संख्या में दवाएं फेल होना बेहद गंभीर संकेत है।
दवा कोई सामान्य उत्पाद नहीं—यह जान बचाती है।
ऐसी दवाएं अगर गलत तरीके से बनेंगी, तो नुकसान आम जनता को ही झेलना पड़ेगा।

अब समय आ गया है कि उत्तराखंड की फार्मा इंडस्ट्री गुणवत्ता पर ध्यान दे और प्रशासन सख्ती से कार्रवाई करे।
क्योंकि मरीज की जान से बड़ा कोई लाभ, कोई उद्योग नहीं।

Ad

सम्बंधित खबरें