
नैनीताल हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि सहमति से बने शारीरिक संबंध को दुष्कर्म नहीं माना जा सकता।
कोर्ट ने देहरादून के एक मामले में एफआईआर चार्जशीट और निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया जहां एक महिला ने शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध बनाने का आरोप लगाया था। कोर्ट ने कहा कि बालिग महिला की सहमति से बने संबंध को दुष्कर्म नहीं कह सकते।
• हाई कोर्ट सहमति से संबंध दुष्कर्म नहीं
• देहरादून मामला प्राथमिकी और चार्जशीट रद्द
• सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया गया
नैनीताल । हाई कोर्ट ने दुष्कर्म के एक मामले में दर्ज एफआइआर, चार्जशीट और निचली अदालत के आदेश को रद कर दिया है। न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की एकलपीठ ने कहा कि जब कोई वयस्क महिला अपनी सहमति से लंबे समय तक शारीरिक संबंध बनाती है, तो उसे दुष्कर्म नहीं माना जा सकता।
अदालत ने पूरे प्रकरण को अतिरंजना करार देते हुए याचिकाकर्ता गुरमीत सिंह को राहत दी है। मामला देहरादून के कैंट थाने से जुड़ा है। शिकायतकर्ता महिला ने आरोप लगाया था कि पुलिस उपनिरीक्षक गुरमीत सिंह ने शादी का झांसा देकर तीन साल तक शारीरिक संबंध बनाए और बाद में संपर्क तोड़ दिया।
इस आधार पर 13 दिसंबर 2022 को प्राथमिकी दर्ज की गई और 22 जनवरी 2023 को पुलिस ने निचली कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की। सीजेएम देहरादून ने 10 मार्च 2023 को चार्जशीट का संज्ञान लेते हुए याचिकाकर्ता को तलब किया था।
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि शिकायतकर्ता 50 वर्षीय महिला हैं और उनसे 15 वर्ष बड़ी हैं। दोनों के बीच आपसी सहमति से संबंध बने थे और यह सब शादी के झांसे के कारण नहीं हुआ।
शिकायतकर्ता ने आर्थिक मदद भी ली थी और बाद में रकम लौटाने के विवाद के चलते यह मामला गढ़ा गया। अदालत के समक्ष सुप्रीम कोर्ट का मंदार दीपक पवार बनाम महाराष्ट्र राज्य का फैसला भी प्रस्तुत किया गया, जिसमें समान परिस्थितियों में दुष्कर्म का अपराध न बनने की बात कही गई थी।
उधर, राज्य सरकार और पीड़िता की ओर से आरोपों को सही ठहराते हुए कार्रवाई का समर्थन किया गया। लेकिन हाई कोर्ट ने माना कि वादी स्वयं वयस्क हैं और अपनी इच्छा से संबंध बनाए गए थे, इसलिए दुष्कर्म का मामला नहीं बनता।
नतीजतन, अदालत ने गुरमीत सिंह के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी, चार्जशीट और समस्त न्यायिक कार्यवाही को निरस्त कर दिया। यह आदेश पिछले महीने पारित हुआ था।