Big Breaking:-उत्तराखंड के 70 गांवों में कीड़े जैसी दिखने वाली जड़ी की भरमार, कीमत 11 लाख; बेचकर लोग मालामाल

पिथौरागढ़ जिले के गोरी गंगा इलाके में कीड़ा जड़ी के संग्रहण से सामाजिक-आर्थिक बदलाव आया है, जिससे गांवों में रिवर्स पलायन हो रहा है। शिक्षा का स्तर बढ़ने से संस्कृति पर प्रभाव पड़ा है। अनियमित दोहन से भविष्य में कीड़ा जड़ी के विलुप्त होने की आशंका है।

2013 और 2022 में इसका मूल्य 11 लाख प्रति किलो तक पहुंच गया था, जिससे प्राप्त आय को लोगों ने शिक्षा और आवास जैसे क्षेत्रों में खर्च किया।

नैनीताल। पिथौरागढ़ जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्र धारचूला-मुनस्यारी के गोरी गंगा इलाके में कीड़ा जड़ी संग्रहण व विपणन से बड़ा सामाजिक-आर्थिक बदलाव आया है। यहां तक कि गांवों में इससे आई आर्थिक समृद्धि से रिवर्स पलायन हो रहा है। कीड़ा जड़ी से आय होने के बाद रहन-सहन का स्तर उच्च हो गया है।

शिक्षा का स्तर बढ़ने से परंपरागत बोली भाषा, पहनावा पर भी प्रभाव पड़ा है। कृषि क्षेत्र सिमट रहा है। बदलते पारिस्थितिकीय परिवर्तन को देखते हुए 56.51 प्रतिशत परिवारों का मानना है कि यदि इसी प्रकार अनियमित दोहन चलता रहा, तो भविष्य में कीड़ा जड़ी विलुप्त हो सकती है।

कुमाऊं विवि के भूगोल के विभागाध्यक्ष प्रो. आरसी जोशी के निर्देशन में उच्च हिमालयी क्षेत्र के इंटर कालेज में भूगोल प्रवक्ता डा. कवींद्र सिंह कठायत ने गोरी गंगा क्षेत्र में कीड़ा जड़ी संग्रह एवं प्रभाव विश्लेषण पर शोध अध्ययन किया है।

प्राकृतिक कीट कवक कीड़ा जड़ी गोरी गंगा घाटी क्षेत्र में समुद्र तल से 3205 मीटर से लेकर 5200 मीटर तक ऊंचाई वाले बुग्याल क्षेत्रों में पाई जाती है। गोरी गंगा का क्षेत्रफल 2244 वर्ग किलोमीटर है। इस घाटी में 170 गांव हैं, जहां की आबादी 2001 में 42301 व 2011 में 43321 थी। दशकीय वृद्धि दर करीब 41 प्रतिशत है।

समुद्र तल से तीन हजार मीटर से 3600 मीटर तक में 14 ग्राम, जबकि इससे अधिक में एक गांव रालम है। इस क्षेत्र के 70 गांवों के 1881 परिवारों के 3425 लोग कीड़ा जड़ी के दोहन में संलग्न हैं।

कनार के ग्रामीणों ने की शुरुआत

शोध अध्ययन के अनुसार 1995 में कनार के ग्रामीणों ने नेपाली मजदूरों के माध्यम से बासली डांडा बुग्याल में विदोहन प्रारंभ किया, जबकि पूरे घाटी क्षेत्र में 2001 से व्यापक रूप से विदोहन शुरू हुआ।

कीड़ा जड़ी का व्यापार भारत, नेपाल, तिब्बत के स्थानीय बाजारों से होते हुए चीन, हांगकांग, थाईलैंड, सिंगापुर, ताइवान सहित अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक होता है।

वन अधिनियम के तहत कीड़ा जड़ी को वन उपज मानते हुए विभाग के सामान्य पर्यवेक्षक के नियंत्रण में कीड़ा जड़ी संग्रहण, विदोहन, रायल्टी के निर्धारण को नियमावली बनाई है। गोरी गंगा क्षेत्र में क्रीड़ा जड़ी संग्रह वाले 4305 मीटर से 5200 मीटर ऊंचाई वाले 79 बुग्याल हैं, जिनका क्षेत्रफल 352.5 वर्ग किलोमीटर है।

2013 व 2022 में सर्वाधिक 11 लाख प्रति किलो रहा मूल्य

2022 में क्षेत्रीय सर्वेक्षण के अनुसार 70 गांवों में 175.15 किलो कीड़ा जड़ी का संग्रह किया गया। 2010 से 2022 तक के अध्ययन के अनुसार 2010 में सबसे कम 1879 परिवार व 2014 में सर्वाधिक 2132 परिवार क्रीड़ा जड़ी के दोहन में संलग्न हैं। 2011 में सर्वाधिक 279.1 किलो व 2021 में सबसे कम 143.9 किलो कीड़ा जड़ी का संग्रह हुआ।

2013 में प्रति परिवार इससे सर्वाधिक 137221 रुपये आय प्राप्त हुई, जबकि 2020 में सबसे कम प्रति परिवार 54976 रुपये आय हुई। क्षेत्र में 2010 में सबसे कम मूल्य पांच लाख प्रतिकिलो, जबकि 2013 व 2022 में सर्वाधिक 11 लाख प्रति किलो मूल्य था।

इस आय को 998 परिवारों के 1530 व्यक्तियों ने उच्च शिक्षा में, 732 ने अपने गांव में, 142 परिवारों ने गांव के बाहर आवासीय भवन बनाने में खर्च किया था। इसके अलावा टैक्सी, गाड़ी में 21, निजी वाहन में 61, दुकान में 57, पशुपालन में 139 परिवारों ने आय का उपयोग किया।

कीड़ा जड़ी से आय से रिवर्स पलायन

शोध अध्ययन के अनुसार कीड़ा जड़ी से प्राप्त आय के बाद इन गांवों में रिवर्स पलायन होने लगा है। 1971 से 2011 तक दशकीय वृद्धि दर ऋणात्मक, जबकि 2011 से 2011 के मध्यम 113.84 प्रतिशत वृद्धि दर है।

इस क्षेत्र में 2011 से 2022 के बीच 47.75 प्रतिशत परिवार जड़ी-बूटी संग्रह, 26.42 प्रतिशत परंपरागत कृषि व पैतृक गांव होने के कारण 25.83 प्रतिशत परिवार गांव लौटे। ग्रीष्मकाल में 49.55 प्रतिशत परिवारों का व्यवसाय कीड़ा जड़ी संग्रह है।

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