Big Breaking:-एक गांव…आठ तालाब और सफलता की कहानी: कीरतपुर में हर साल 2000 क्विंटल मछली बाजारों में जा रही, लाखों में आय

कीरतपुर गांव में मछली पालन की शुरुआत चार एकड़ तालाब से हुई, जो लगातार मेहनत और समर्पण के बल पर आज आठ बड़े तालाबों में विकसित हो गया है। इस साधना-भाव से किए गए प्रयासों ने गांव को एक साधारण स्थान से एक असाधारण मत्स्य उत्पादन केंद्र में बदल दिया है।

कभी चार एकड़ के तालाब से शुरू हुआ सफर आज कीरतपुर में आठ बड़े तालाबों में तरक्की बनकर तैर रहा है। इस पूरी यात्रा की धुरी रही है कभी हार न मानने वाली मेहनत।

मछली पालन को व्यवसाय नहीं बल्कि रोजमर्रा की साधना मानकर किए गए प्रयासों ने एक साधारण गांव को मत्स्य उत्पादन के असाधारण केंद्र में बदल दिया है।

कीरतपुर गांव में आठ बड़े तालाब प्रेरणा का केंद्र बन गए हैं। कुल 13 एकड़ क्षेत्र में फैले इन तालाबों में मत्स्य उत्पादक मलखान सिंह रोहू, कतला, पंगेसियस और ग्रास कार्प जैसी प्रजातियों का उत्पादन होता है। यहां से हर साल लगभग दो हजार क्विंटल मछली बाजारों में जाती है जो जिले की कुल मत्स्य आपूर्ति में बड़ा हिस्सा रखती है।

तालाबों में मछली पालन की प्रक्रिया ने गांव में रोजगार भी पैदा किया है। चार स्थानीय कामगार पूरे साल तालाबों की देखरेख में लगे रहते हैं। चारा, श्रम और रखरखाव पर सालाना 70-80 लाख रुपये का निवेश होता है जबकि उत्पादन से 20-25 लाख रुपये की शुद्ध आय निकल जाती है।

सबसे खास बात यह है कि उत्पादकों को अपनी मछली बेचने के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता। रुद्रपुर, बाजपुर, बरेली, पीलीभीत और बिलासपुर के व्यापारी सीधे गांव पहुंचकर मछली खरीद लेते हैं। इसमें परिवहन और बिचौलियों का खर्च बच जाता है जिससे आय में स्थिरता आती है।

पुरानी शुरुआत, नए प्रयोग
कीरतपुर में यह बदलाव अचानक नहीं आया। गांव में मछली पालन की शुरुआत वर्ष 1986 में महज चार एकड़ में बने छोटे तालाबों से हुई थी। तब मछली 20 रुपये किलो तक बिकती थी। आज 95 से 150 रुपये प्रति किलो की दर पर बिक्री की जाती है। समय के साथ तालाबों का विस्तार हुआ, प्रजातियां बढ़ीं और अब यह क्षेत्र जिले का एक बड़ा मत्स्य उत्पादन केंद्र बन चुका है।

चुनौतियां भी कम नहीं
सर्दी के मौसम में तापमान बड़ा खतरा लेकर आता है। मछलियों के लिए 16 डिग्री सेल्सियस से नीचे का तापमान जानलेवा हो सकता है। इसी कारण ठंड में रात के समय तालाबों में ताजा पानी छोड़कर तापमान नियंत्रित करना पड़ता है। यह अतिरिक्त मेहनत और खर्च जोड़ता है पर उत्पादन की सुरक्षा के लिए यह जरूरी है।

चार दशक पहले फिश फार्म की स्थापना की थी। तब चार एकड़ भूमि में तालाब बनाकर मछली पालन का काम शुरू किया था। तब 20 रुपया किलो मछली बिकती थी। 39 वर्ष की मेहनत अब रंग ला रही है। -मलखान सिंह, मत्स्य उत्पादक

मलखान सिंह जिले के सबसे बड़े मछली उत्पादक हैं। ऐसे प्रयास दिखाते हैं कि योजनाओं और तकनीकी सहायता के साथ ग्रामीण क्षेत्र में बड़ी आर्थिक गतिविधि विकसित की जा सकती है। यह मॉडल अन्य किसानों के लिए भी प्रेरक है। -संजय छिम्वाल, सहायक निदेशक मत्स्य, यूएस नगर

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