Big Breaking:-राजाजी से लुप्त हो चुके जंगली कुत्ते और गैंडा, कभी थे जंगलों की शान, इस पक्षी की संख्या भी हुई कम

जंगली कुत्ते और गैंडा  राजाजी से लुप्त हो चुके हैं। कभी ये जंगलों की शान थी। फिन्स वीवर पक्षी की संख्या भी कम हुई है।

प्रदेश में वन महकमे के संरक्षण के प्रयासों के बीच बाघ, हाथी समेत दूसरे वन्यजीवों की संख्या बढ़ी है। लेकिन जैव विविधता से समृद्ध जंगल में कई वन्यजीव लुप्त भी हुए हैं।

इसमें राजाजी टाइगर रिजर्व में जंगली कुत्ते से लेकर गैंडा तक शामिल है। इसके अलावा फिन्स वीवर पक्षी (बया) की संख्या भी कम हुई है।

भारतीय वन्यजीव संस्थान के सेवानिवृत्त वैज्ञानिक जीएस रावत कहते हैं कि चीला और धौलखंड में उन्होंने जंगली कुत्ते को देखा था। इसी तरह गैंडा भी मिलता था।

1931 में कोटद्वार क्षेत्र में गैंडा का शिकार किया गया था। शिकार और वास स्थल प्रभावित होने से गैंडा रिपोर्ट नहीं हुआ है। यह दोनों प्रजातियां राज्य में नहीं मिलती हैं।

सेवानिवृत्त प्रमुख वन संरक्षक श्रीकांत चंदोला कहते हैं कि तराई पूर्वी वन प्रभाग के किलपुरा, सुरई रेंज के जंगल गैंडा के लिए वास स्थल जैसे हैं। यहां वह पहले भी रिपोर्ट थे।

ज्ञात हो कि तराई पूर्वी वन प्रभाग के जंगलों में गैंडे को पुन: लाने की संभावना पर विचार किया था। इसको लेकर भारतीय वन्यजीव संस्थान ने एक अध्ययन भी किया था, जिसमें संभावना उपयुक्त मिली थी।

कार्बेट टाइगर रिजर्व में चीता चौकी

कार्बेट टाइगर रिजर्व में चीता नाला है, इसके नाम से चीता चौकी भी है। क्या पहले यहां पर चीता था? इस सवाल के जवाब में पूर्व पीसीसीएफ चंदोला कहते हैं कि कार्बेट टाइगर रिजर्व का क्षेत्र है, वह चीता के वास स्थल जैसा नहीं है। चीता के लिए नेचुरल घास का मैदान होना चाहिए। रही बात नाम तो इसकी कोई अन्य वजह हो सकती है।

फिन्स वीवर की संख्या भी कम

केवल बड़े वन्यजीवों की बात नहीं है। ऊधमसिंह नगर और नैनीताल में मिलने वाली फिन्स वीवर पक्षी बहुत कम दिखाई देती है, जो उसकी कम होती संख्या का संकेत माना जाता है।

पूर्व प्रमुख वन संरक्षक धनंजय मोहन कहते हैं फिन्स वीवर संरक्षित जंगल में रहने वाली प्रजाति नहीं है। बल्कि इसका वास स्थल खेतों के पास होता है। खेतों का स्वरूप बदलने उसके आसपास औद्योगिक गतिविधियां बढ़ने आदि के चलते संख्या मेंं कमी आना कारण हो सकता है।

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