
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक पॉक्सो संबंधी मामले में बगैर साक्ष्य के सजा दे दिए जाने पर निचली अदालत के फैसले पर नाराजगी जताई है। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यह मामला अपर्याप्त साक्ष्य का नहीं बल्कि साक्ष्य ही न होने का है।
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने एक पॉक्सो संबंधी मामले में बगैर साक्ष्य के सजा दे दिए जाने पर निचली अदालत के फैसले पर नाराजगी जताई है। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यह मामला अपर्याप्त साक्ष्य का नहीं बल्कि साक्ष्य ही न होने का है।
निचली अदालत ने बिना पर्याप्त साक्ष्य के ही आरोपी को दोषी ठहराया और सजा दी। कोर्ट ने कठोर टिप्पणी करते हुए मामले में अभियुक्त रामपाल को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया।
मुख्य न्यायाधीश जी नरेंदर एवं न्यायमूर्ति अलोक महरा की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। मामले के अनुसार उत्तरकाशी जिले के जखोल गांव में रामपाल को जनवरी 2022 में एक नाबालिग लड़की को बहला-फुसलाकर ले जाने और दुष्कर्म के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
विशेष सत्र न्यायाधीश उत्तरकाशी ने उसे पॉक्सो की धारा सहित आईपीसी की धारा 376 के तहत दोषी ठहराया था। हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस और अभियोजन यह तक साबित नहीं कर सके कि कथित अपराध हुआ कहां था।
पीड़िता को 23 जनवरी 2022 को आरोपी के साथ अराकोट बाजार पुल के पास पाया गया था, लेकिन अपराध संबंधी किसी ठिकाने, मकान या होटल का साक्ष्य प्रस्तुत किया गया, और न ही कोई प्रत्यक्षदर्शी गवाह था।
मेडिकल रिपोर्ट में भी डॉक्टर ने स्पष्ट कहा था कि पीड़िता के शरीर या जननांगों पर कोई चोट, सूजन या कट के निशान नहीं पाए गए। रिपोर्ट में बलपूर्वक यौन संबंध के कोई संकेत नहीं लिखे गए थे।
ट्रायल कोर्ट की कड़ी आलोचना
नैनीताल हाईकोर्ट ने निचली अदालत के निर्णय को चौंकाने वाला बताते हुए आदेश में कहा कि ट्रायल कोर्ट ने ऐसे दस्तावेज पर भरोसा किया जो रिकॉर्ड में मौजूद ही नहीं था। पीड़िता ने अदालत में आरोपी के खिलाफ कोई आरोप नहीं दोहराया, फिर भी दोष सिद्ध कर दिया गया।
अदालत ने पाया कि ट्रायल कोर्ट ने पीड़िता के 164 सीआरपीसी बयान पर भरोसा किया, जबकि वह बयान रिकॉर्ड में एक्सहिबिट के रूप में शामिल ही नहीं था। पीड़िता ने अपने बयान में आरोपी के साथ किसी शारीरिक संबंध से साफ इनकार किया था।









