
ग्रामीणों ने प्रशासन को वन विभाग की भूमि सहित छह संभावित स्थलों की सूची सौंपी है। इसमें भैरोघाटी, कोपांग, जांगला, डबरानी, ओंगी और अखोद थातर को विकल्प के तौर पर सुझाया है। प्रभावितों का आरोप है कि प्रशासन की ओर से अब तक पुनर्वास के
उत्तरकाशी के धराली में खीर गंगा से आई तबाही को तीन महीने बीत चुके हैं, लेकिन आपदा प्रभावितों का संघर्ष अब भी जारी है।
प्रभावितों का कहना है कि राज्य सरकार की ओर से दिया गया पांच लाख रुपये का मुआवजा विनाश के पैमाने को देखते हुए नाकाफी है। उन्होंने उसी स्थान पर निर्माण के बजाय सुरक्षित स्थानों पर पुनर्वास की मांग की है।
ग्रामीणों ने प्रशासन को वन विभाग की भूमि सहित छह संभावित स्थलों की सूची सौंपी है। इसमें भैरोघाटी, कोपांग, जांगला, डबरानी, ओंगी और अखोद थातर को विकल्प के तौर पर सुझाया है।
प्रभावितों का आरोप है कि प्रशासन की ओर से अब तक पुनर्वास के कोई ठोस उपाय नहीं किए गए हैं। हालात न सुधरे तो विरोध-प्रदर्शन करेंगे।
इस बारे में सचिव आपदा प्रबंधन विनोद कुमार सुमन ने बताया कि धराली में पीडीएनए का काम पूरा हो चुका है, प्राथमिक तौर पर किए जाने वाले कार्य पूरे किए जा चुके हैं।
आपदा प्रभावितों के पुनर्वास को लेकर शासन स्तर पर मंथन किया जा रहा है। शीघ्र ही पुनर्वास के लिए केंद्र सरकार को आर्थिक पैकेज के लिए प्रस्ताव भेजा जाएगा।
आपदा सेे उत्तराखंड को आठ हजार करोड़ की चोट
देहरादून। उत्तराखंड में इस वर्ष मानसून के दौरान आई आपदाओं ने करीब आठ हजार करोड़ रुपये की चोट पहुंचाई है। आपदा प्रबंधन विभाग के सूत्रों की मानें तो क्षति के प्रारंभिक आकलन में यह आंकड़ा सामने आया है। हालांकि अभी वास्तविक क्षति की तस्वीर फाइनल रिपोर्ट के बाद ही सामने आ पाएगी।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की ओर से शुरू की गई पोस्ट डिज़ास्टर नीड्स असेसमेंट (पीडीएनए) प्रक्रिया के तहत गठित सर्वेक्षण टीम राज्य के दोनों मंडलों गढ़वाल और कुमाऊं में सर्वेक्षण का काम पूरा कर दिया है। टीम ने प्रभावित क्षेत्रों में किए गए सर्वे में करीब आठ करोड़ रुपये के नुकसान का आकलन किया है।
सर्दियों की चुनौती, बर्फबारी बढ़ाएगी मुश्किलें
आमतौर पर सर्दियों की शुरुआत में धराली के लोग मैदानी शहरों की ओर पलायन कर जाते थे, लेकिन इस बार मंजर अलग है। ज्यादातर लोग अपने प्रियजनों की तलाश और मलबे में दबे अपने सामान को खोजने के लिए वहीं डटे हुए हैं।
स्थानीय निवासी रजत पंवार बताते हैं कि लोग मलबे में अपने घरों के अवशेष ढूंढ रहे हैं। तापमान में गिरावट और आगामी बर्फबारी की संभावना ने ग्रामीणों की चिंता बढ़ा दी है। उन्हें डर है कि बर्फ गिरने के बाद पुनर्निर्माण कार्य असंभव हो जाएगा।








