
दून का गुनाह…57 वर्ष में कब्जाया रिस्पना का 251 मीटर क्षेत्र, धराली की घटना राजधानी के लिए अलार्म
समय रहते नदियों के बाढ़ क्षेत्र से अवराेध नहीं हटाए तो भविष्य में रिस्पना समेत अन्य नदियां खीर गंगा की तरह अपना रास्ता खुद चुन लें तो कोई हैरत नहीं होगी।
धराली में खीर गंगा का प्रवाह क्षेत्र बाधित करने से मची तबाही सिर्फ एक हादसा भर नहीं है, यह पहाड़ी जनपदों खासकर देहरादून के लिए अलार्म है। नदियों को कब्जाने का धराली अकेला गुनहगार नहीं है।
दून ने भी नदियों की जमीनें कब्जाकर इमारतें खड़ी कर दी हैं। अकेले रिस्पना नदी का ही 251 मीटर फ्लड जोन कब्जाकर आबादी में तब्दील कर दिया गया है।
धराली में आई जल प्रलय दून के लिए संदेश है, अगर समय रहते नदियों के बाढ़ क्षेत्र से अवराेध नहीं हटाए तो भविष्य में रिस्पना समेत अन्य नदियां खीर गंगा की तरह अपना रास्ता खुद चुन लें तो कोई हैरत नहीं होगी।
अतिक्रमण के कारण रिस्पना व अन्य नदियों का प्रवाह तो प्रभावित होता ही है बरसात में शहर का पानी भी नदियों में सीधे नहीं पहुंच पाता।
दून में नदियों की जमीनों पर हुए कब्जे पर न्यायालय व एनजीटी भी चिंता जता चुके हैं। अक्तूबर 2024 में एनजीटी ने शासन को निर्देश दिया था कि रिस्पना नदी में बाढ़ के आधार पर फ्लड जोन घोषित किया जाए।
दस्तावेज खंगाले गए तो पता चला कि वर्ष 1968 में रिस्पना नदी की औसत चौड़ाई लगभग 319 मीटर थी लेकिन अब यह केवल 68 मीटर ही रह गई है।
मतलब साफ है कि रिस्पना नदी के 251 मीटर बाढ़ क्षेत्र में बसी आबादी नदी के प्रवाह में अवरोध बनी हुई है।