Big Breaking:-तो ये वो हैं जिनके लिए अंगूर के गुच्छे और ऊपर हों गए हैं हरीश रावत ने ये तस्वीर की जारी

महेंद्र भट्ट के पुनः पदासीन होने की घड़ी में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जो कहा, वो महज़ बयान नहीं था — वो राजनीतिक शतरंज की एक बिसात थी, जिस पर प्यादे भी समझ गए कि राजा अभी मोहरा नहीं बना।

उन्होंने कहा, “अफवाहों के आधार पर निर्णय नहीं लिए जाते…” — यह वाक्य सुनकर उत्तराखंड की राजनीति में बैठे कई ‘पलटी विशेषज्ञ’ एक पल को ठिठक गए होंगे, जैसे पुराना घी सूंघकर बासी दूध हिल गया हो।

सीएम धामी ने जब कहा “हमारा नेतृत्व अंगद की तरह अपने कार्यकर्ता के पैर को जमाए रखता है,” तो मानो उन्होंने किसी विशेष अंगूर के गुच्छे को देख कर बोला हो — वो जो ‘सीएम रेस’ वाले गुच्छे में लटक रहा है और दिन-रात झूला झूल रहा है।

अब हरीश रावत की बात करें, तो वे इस पूरी कथा के ‘कबीर’ हैं — व्यंग्य में व्याख्यान, और फनी में फायर। अंगूर के दो गुच्छों वाला कार्टून जैसे सत्ता की बेल पर लगे इच्छाओं के फल को उघाड़ कर दिखा रहा हो।

एक तरफ सीएम पद के दावेदार, दूसरी तरफ मंत्री पद के ललचाए चेहरे। देखिए ना, कहीं धन सिंह रावत छांव ढूंढते हैं, कहीं सतपाल महाराज भविष्य की तपस्या में लीन हैं, और बलूनी जी अब भी दिल्ली से देवभूमि का रास्ता नाप रहे हैं।

और त्रिवेंद्र सिंह रावत? वो तो अब पोस्ट-पॉलिटिक्स पब्लिक स्पीकिंग में ध्यान लगाए बैठे हैं। और निशंक जी, जो कभी डाक्टर बनते-बनते मंत्री बन गए थे, अब फिर से ‘संभावनाओं’ का स्टेथोस्कोप ले घूम रहे हैं।

लेकिन धामी का अंदाज़ बड़ा ही ‘धामीक’ है — शांत, संयमी, पर जब बोलते हैं, तो सीधा विपक्ष की मरोड़ पकड़ लेते हैं और अपने ही खेमे के ‘खट्टे अंगूर शास्त्रियों’ को बिना नाम लिए नमक दिखा जाते हैं।


हर बार जब सीएम की कुर्सी को लेकर हवा बनाई जाती है, धामी जी उसका ‘एंटी वायरल’ बयान रिलीज कर देते हैं। और यह बयान भी वैसा ही था — जिसमें हर शब्द डिक्शनरी नहीं, डिकोडिंग मांगता है।

दरअसल, भाजपा के भीतर जब “भावी मुख्यमंत्री” शब्द कानों में गूंजने लगता है, तो समझ जाइए – या तो कोई दिल्ली जाकर लौटा है, या किसी ने सपने में ओथ लेते देख लिया है खुद को।


अभी जो बयान आया है, उसमें साफ है कि “खट्टे अंगूरों” को ये बता दिया गया है कि अंगद का पैर हिलाने की कोशिश मत करो, वरना कहानी रामायण से सीधे पंचतंत्र में चली जाएगी।

हरीश रावत जैसे अनुभवी खिलाड़‍ियों के लिए यह महज़ मसाला नहीं, बल्कि राजनीतिक चटनी है — जिसमें बीजेपी के भीतर के रसों की पहचान हो जाती है।
तो जनाब, अंगूर चाहे कितने भी खट्टे हो जाएं, धामी जी की शैली ये साबित कर रही है — मुख्यमंत्री वही, जिसने बिना बोले भी बहुत कुछ कह दिया। बाकी अंगूरों को अभी और धूप चाहिए, शायद पकने में वक्त है।

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