
उत्तराखंड में हर साल छह करोड़ पर्यटक आते हैं, लेकिन पार्किंग-मूलभूत सुविधाएं चुनौती बनी हैं। ऐसे में भविष्य के रोडमैप में खास रणनीति बनाने की जरूरत हैं।
वर्ष 2000 में 1.66 करोड़ पर्यटकों का आंकड़ा दर्ज हुआ था। अब सालाना 5.96 करोड़ पर आंकड़ा पहुंच गया है।
राज्य बनने के बाद पर्यटकों की संख्या करीब चार गुना बढ़ गई लेकिन उनके लिए पार्किंग और मूलभूत सुविधाएं आज भी चुनौती हैं। इस पर भविष्य के रोडमैप में खास रणनीति बनाने की जरूरत है।
पर्वतीय शहरों में जमीन की कमी कहीं न कहीं पार्किंग की समस्या का मुख्य कारण है। इससे निपटने के लिए 25 साल में कई प्रयास हुए।
दो साल पहले कुछ शहरों बागेश्वर, लक्ष्मणझूला, ऊखीमठ, कैम्प्टी फॉल, नैनबाग, तपोवन, उत्तरकाशी, यमुनोत्री मार्ग (उत्तरकाशी), नैनीताल (दो स्थानों पर) में टनल पार्किंग बनाने का निर्णय लिया गया था लेकिन धरातल पर अभी सबकुछ अधूरा है।
15,857 वाहन क्षमता की 182 पार्किंग को लेकर भी कार्ययोजना पर काम शुरू किया गया था। इनमें 57 सरफेस पार्किंग, 107 मल्टी स्टोरी पार्किंग, नौ ऑटोमेटेड पार्किंग, 10 टनल पार्किंग शामिल हैं। लेकिन हर साल उत्तराखंड आने वाले वाहनों का आंकड़ा इससे कहीं अधिक है।
नैनीताल और मसूरी में तो पर्यटन सीजन में भीड़ को देखते हुए वाहनों की एंट्री ही बंद करनी पड़ रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस दिशा में ठोस कदम उठाने की जरूरत है। ऐसी नीतियां बनाने की जरूरत है, जिससे पहाड़ आने वाले पर्यटकों को आसानी हो।
24 साल में पहुंचे पर्यटक
| वर्ष | देश के पर्यटक |
| 2000 | 1.66 करोड़ |
| 2018 | 3.67 करोड़ |
| 2019 | 3.92 करोड़ |
| 2020 | 78 लाख |
| 2021 | 2.00 करोड़ |
| 2022 | 5.39 करोड़ |
| 2023 | 5.93 करोड़ |
| 2024 | 5.96 करोड़ |
मूलभूत सुविधाएं भी बढ़ाने की जरूरत
वैसे तो ज्यादातर शहरों में सार्वजनिक शौचालय की सुविधा है लेकिन पर्यटकों की लगातार बढ़ रही तादाद को देखते हुए इस दिशा में और काम करने की जरूरत है। इसी प्रकार, पेयजल के लिए भी ठोस रणनीति बनाने की जरूरत है क्योंकि पर्यटकों को बोतलबंद पानी के सहारे रहना पड़ता है।
इस कारण जहां उनका खर्च बढ़ता है तो वहीं पर्वतीय क्षेत्रों में प्लास्टिक बोतलों का प्रचलन भी बढ़ रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक, सरकार को ऐसे कदम उठाने होंगे कि मूलभूत सुविधाएं और मजबूत हों।









