
नैनीताल उच्च न्यायालय ने थराली आपदा पर सरकार की रिपोर्ट से असंतुष्टि जताई। याचिकाकर्ता को रिपोर्ट पर आपत्ति दर्ज करने का निर्देश दिया गया है। अधिवक्ता सिद्धार्थ सिंह नेगी ने पीड़ितों को मुआवजा न मिलने, अस्पताल की बदहाली और अर्ली वेदर सिस्टम की कमी जैसे मुद्दे उठाए।
न्यायालय ने आपदा प्रबंधन के लिए ठोस नीति बनाने की आवश्यकता पर बल दिया। थराली में बादल फटने से भारी नुकसान हुआ था, जिससे लोग अभी तक उबर नहीं पाए हैं।
नैनीताल । हाई कोर्ट ने चमोली जिले की थराली तहसील क्षेत्र में अगस्त में बादल फटने से आई आपदा के बाद प्रभावितों को जरूरी सुविधाओं का लाभ नहीं मिलने से संबंधित जनहित याचिका पर सुनवाई की।
कोर्ट सरकार की ओर से पेश रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं हुई। साथ ही याचिकाकर्ता से सरकार की ओर से पेश रिपोर्ट पर आपत्ति दाखिल करने को कहा है। अगली सुनवाई एक सप्ताह बाद होगी।
शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी नरेंद्र व न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ में पेश सरकार की रिपोर्ट पर याचिकाकर्ता थराली निवासी अधिवक्ता सिद्धार्थ सिंह नेगी की ओर से गंभीर सवाल खड़े किए गए।
कहा कि अभी तक राज्य सरकार ने पीड़ितों को मुआवजा तक नहीं दिया जबकि जबकि कई लोग जो इस आपदा में बह गए थे उनका अभी तक सुराग नहीं मिला है।
थराली का अस्पताल बदहाल है, वहां चिकित्सकों की नियुक्ति नहीं हो सकी है। गर्भवतियों की डिलीवरी अन्य अस्पतालों में कराई जा रही है। आपदा की दृष्टि से संवेदनशील इलाकों में राज्य सरकार ने कोर्ट के आदेश होने के बाद भी अर्ली वेदर सिस्टम नही लगाया।
अभी तक सरकार ने आपदा प्रबंधन से संबंधित गाइडलाइन अपनी वेबसाइट पर जारी नही की है जबकि सूचना का अधिकार अधिनियम में भी इसकी सूचना आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से नहीं दी गई।
मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने याचिकाकर्ता से राज्य आपदा प्रबंधन की रिपोर्ट पर आपत्ति पेश करने को कहा है। पूर्व में हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि उत्तराखंड पहाड़ी राज्य है। बादल फटना, ग्लेशियरों का पिघलना, मानवीय हस्तक्षेप का कारण हो सकता है लेकिन इनसे निपटने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है।
राज्य में पिछले कुछ सालों से ऐसी घटनाएं बार-बार हो रही है। जिसकी वजह से राज्य का पर्यटन, स्थानीय लोग व उनका व्यवसाय प्रभावित हो रहा है। राज्य सरकार इसे बचाने के लिए कोई ठोस नीति बनाए। विशेषज्ञों की भी सलाह लें।
दो बार बादल फटने से आई थी भीषण आपदा
याचिकाकर्ता ने कहा है कि 22 व 28 अगस्त को थराली तहसील में दो बार बादल फटने की वजह से भीषण आपदा आ गई थी। जिसमें करोड़ों की जनधन की हानि हुई। कई घर आपदा में बह गए। थराली तहसील के आपदा प्रभावित हादसे से उबर नहीं पाए हैं।
स्थानीय लोग रोजगार की तलाश के बजाय अपनों की खोजबीन कर रहे है। राज्य सरकार की ओर से दी जा रही सुविधाएं नाकाफी हैं। तहसील के सभी मोटर मार्ग क्षतिग्रस्त होने से गांवों का संपर्क कटा है। स्वास्थ्य सुविधाओं का अकाल है सरकारी सस्ते गल्ले की दुकानों में राशन तक समय पर नही आ पा रहा है।









