Big Breaking:-सिस्टम से सवाल…पशुओं के लिए राहत का ठिकाना या फिर भूख का कैदखाना, बेजुबान अपना दर्द आखिर किससे कहें

हल्द्वानी की सड़कों पर बेसहारा भटकते लावारिस पशु आज गोशाला की चारदीवारी में हैं। मुश्किल यह है कि यहां भी उन्हें पेट भरने लायक सहारा नहीं मिल पा रहा। हर माह लाखों का अनुदान देने के बावजूद निगम की व्यवस्था सवालों के कटघरे में है।

हल्द्वानी की राजपुरा गोशाला में पल रहे 324 गोवंश और अन्य पशु कुपोषण की गिरफ्त में हैं। जिन पशुओं को दया और सेवा की मिसाल माना जाता है वे अब अपनी उभरी हड्डियों से भूख और लाचारी की कहानी सुना रहे हैं। कभी सड़कों पर भटकते, हादसों को न्योता देते लावारिस पशु अब गोशाला की चारदीवारी के भीतर भी सुकून से नहीं जी पा रहे।

राजपुरा स्थित नगर निगम की गोशाला में पल रहे 324 पशुओं की हड्डियां अब साफ दिखने लगी हैं। वजह है भरपेट चारा न मिलना। शासन की मंशा थी कि इन बेघर जानवरों को सुरक्षित सहारा मिले, मगर जमीनी हकीकत यह है कि दया की मिसाल कही जाने वाली गोशाला आज कुपोषण और अव्यवस्था की दर्दनाक तस्वीर बन चुकी है।

लावारिस पशुओं के कारण शहर में बढ़ते हादसों और जानमाल के नुकसान पर हाईकोर्ट के आदेश के बाद प्रशासन ने राजपुरा और हल्दूचौड़ में गोशालाओं का निर्माण कराया। राजपुरा गोशाला का संचालन आश्रय संस्था को सौंपा गया। यहां गाय, सांड़, बैल, तीन भैंसें और बछड़े-बछिया समेत 324 पशु रह रहे हैं।

गोशाला संचालिका निकिता सुयाल बताती हैं कि रोजाना 40 क्विंटल हरा और 30 क्विंटल सूखा चारा दिया जा रहा है। यानी हर पशु को प्रतिदिन औसतन 12.35 किलो हरा और 9.26 किलो भूसा मिल रहा है।

जबकि वरिष्ठ पशु चिकित्साधिकारी आर.के. पाठक के अनुसार एक स्वस्थ पशु को रोजाना 25 किलो हरा और 10 किलो सूखा चारा चाहिए। यानी हर दिन एक जानवर को करीब आधा ही चारा मिल पा रहा है। नतीजतन कई गायों की पसलियां तक दिखने लगी हैं।

आंकड़ों का गणित, भूख की सच्चाई

• जरूरत: 324 पशुओं को प्रतिदिन 8100 किलो हरा और 3240 किलो सूखा चारा चाहिए।

• मिल रहा: 4000 किलो हरा और 3000 किलो सूखा चारा।

• कमी: हर जानवर को रोजाना 12.65 किलो हरा और 0.74 किलो सूखा चारा कम मिल रहा है।

अनुदान बनाम खर्च

• पशुपालन विभाग हर पशु पर प्रतिदिन 80 रुपये अनुदान देता है।

• कुल अनुदान: 25,920 रुपये प्रतिदिन, यानी करीब 7.77 लाख रुपये मासिक।

• खर्च: केवल चारे पर ही 24,280 रुपये प्रतिदिन।

• कर्मचारियों के वेतन (12 कर्मचारी × ₹12,000) पर 1.44 लाख रुपये मासिक।

• कुल मासिक खर्च: 8.72 लाख रुपये यानी अनुदान से करीब 1 लाख रुपये अधिक।

मौतें और मजबूरियां

गोशाला में अब तक 50 पशुओं की मौत हो चुकी है। संचालिका निकिता सुयाल और पशु चिकित्साधिकारी मनोज पाठक का कहना है कि इनमें से अधिकांश जानवर पहले से बीमार या हादसों में घायल थे। यह बात मान भी लें तो सच्चाई यह भी है कि कुपोषण और अव्यवस्था से उनकी हालत और बिगड़ गई। अंतत: उनका जीवन खत्म हो गया।

जिम्मेदारों की दलीलें

पशु अस्पताल के डॉक्टरों की टीम रोजाना गोशाला में जाकर पशुओं की निगरानी करती है। घायल जानवरों का नियमित उपचार होता है। सभी जानवरों की टैगिंग के आंकड़े हमारे पास उपलब्ध हैं। राजपुरा की ट्रांजिट गोशाला से स्वस्थ्य पशुओं को गंगापुर कबडवाल की गोशाला में शिफ्ट कर दिया जाता है।

धीरेश जोशी, मुख्य पशु चिकित्साधिकारी

गोशाला में पशुओं के लिए रहने व पीने के पानी की व्यवस्था नगर निगम ने की है। इस गोशाला का संचालन निजी संस्था पशु पालन विभाग की निगरानी में कर रही है। हमारी टीम समय-समय पर चेकिंग करती है। शहर के पशुओं को पकड़कर यहां छोड़ा गया है। पशुओं का यदि कम खाना मिल रहा है तो इसकी जांच कराई जाएगी।

गणेश भट्ट, प्रभारी नगर आयुक्त

गोशाला में पल रहे पशुओं की दिन भर सेवा की जाती है। उन्हें समय पर खाना-पानी दिया जाता है। जिन पशुओं की मौत हुई, उसमें अधितर सड़क दुर्घटना में घायल होकर पहुंचे थे। पशुओं को खास मौके पर लोग भी चारा व फल देकर जाते हैं। 
निकिता सुयाल, गोशाला संचालिका

सवालों के घेरे में संवेदनहीनता
अनुदान की करोड़ों की राशि, कर्मचारी, गोशाला की चहारदीवारी और डॉक्टरों की टीम सब कुछ कागजों पर व्यवस्थित दिखता है। हकीकत में राजपुरा की गोशाला भूख से कराहते, कुपोषण से कमजोर होते और धीरे-धीरे मौत की तरफ बढ़ते पशुओं की दर्दनाक तस्वीर है। सवाल यही है कि दया की मिसाल कहे जाने वाले इन गोवंशों को आखिर कब पेट भरने का हक मिलेगा?

सम्बंधित खबरें