
उत्तराखंड में ये कैसा नकल विरोधी “सख्त” कानून है जिसे लेकर के कोई भी खौफ नहीं है, बल्कि पेपर शुरू होने से पहले पेपर आउट करने और पेपर में नकल कराने के लिए जालसाजियां बुनी जा रही हैं?
देहरादून: उत्तराखंड में मैदान से लेकर पहाड़ तक हर जगह हर तरफ पेपर लीक को लेकर आक्रोश है। इस सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि उत्तराखंड सरकार का “सख्त” नकल विरोधी कानून आखिर काम क्यों नहीं कर रहा।
उत्तराखंड सरकार के सख्त नकल विरोधी कानून की उस समय धज्जियां उड़ गई जब नक़ल माफिया हाकम सिंह, ठीक अधीनस्थ चयन आयोग के पेपर से पहले जालसाजी की गतिविधियों में पकड़ा गया। हाकम सिंह इससे पहले जेल भी जा चुका है लेकिन फिर भी उसे उत्तराखंड सरकार के सख्त कानून का कोई डर नहीं।
पहले से थी हरिद्वार पेपर लीक की सूचना
पेपर लीक होने से ठीक पहली शाम को, नक़ल और पेपर-आउट की सुगबुगाहट के चलते, तमाम सोशल मीडिया के बड़े चेहरों का हरिद्वार में जमावड़ा लगना शुरू हो गया। मतलब साफ था कि हरिद्वार में यूकेएसएसएससी के पेपर से पहले कुछ बड़ा होने की संभावनाएं थी। सबसे बड़ी बात, कई लोगों को ये बात पता थी परंतु प्रशासन इस सबसे बेखबर था।
प्रशासन को पेपर शुरू होने के 35 मिनट के बाद पेपर लीक होने का पता चला। यह कैसा नकल विरोधी सख्त कानून है जिसे लेकर के कोई भी खौफ नहीं है, बल्कि पेपर शुरू होने से पहले पेपर आउट करने और पेपर में नकल कराने के लिए जालसाजियां बुनी जा रही हैं।
नक़ल विरोधी क़ानून में क्या हैं प्रावधान
यदि कोई अभ्यर्थी भर्ती परीक्षा में नकल करते या नकल में सहयोग करते पाया जाता है, तो उसे तीन साल की कैद और कम से कम ₹5 लाख का जुर्माना हो सकता है। दूसरी बार दोषी पाए जाने पर सजा बढ़कर 10 साल की कैद और कम से कम ₹10 लाख का जुर्माना हो सकती है। गिरोह बनाकर नकल कराने का षड्यंत्र रचने में 10 करोड रुपए तक का जुर्माना और आजीवन उम्रकैद भी हो सकता है।
हाकम को कितनी हुई सजा
उत्तराखंड में अवैध नौकरियों के सौदागर रहे हाकम सिंह को इससे पहले उत्तराखंड सरकार केवल 13 महीने ही जेल में कैद रख पाई, हालांकि उत्तराखंड सरकार ने हाकम सिंह का रिजॉर्ट सहित लगभग छह करोड़ का साम्राज्य ध्वस्त किया।
हाकम के खिलाफ तीन मुकदमों में से एक में तो विजिलेंस ने कार्रवाई ही आगे नहीं बढ़ाई। यदि विजिलेंस, दरोगा भर्ती धांधली में आरोपियों की रिमांड मांगती, तब हाकम सिंह को जेल में रखा जा सकता था।
वर्तमान हालात छात्रों के लिए खतरनाक
उत्तराखंड की एक असिस्टेंट प्रोफेसर पहले नक़ल करने में खालिद का साथ देती है और फिर प्रश्नपत्र का स्क्रीनशॉट बेरोजगार संघ के अध्यक्ष को देती है.. प्रशासन से कोई भी संपर्क नहीं करता, जबकि स्क्रीनशॉट लेकर बेरोजगार संघ मामला वायरल कर देता है। बड़ा सवाल है.. क्या छात्र महज राजनीति के मोहरे बन गए हैं ?
