Big Breaking:-उत्तराखंड में मेक इन इंडिया का नाम, दो करोड़ की मशीनों के दाम 05 करोड़ पार

सर्वे ऑफ इंडिया में प्लाटर मशीन खरीद में घोटाले का आरोप है। शिकायत के अनुसार, मेक इन इंडिया के नाम पर दो करोड़ की मशीनें 5.42 करोड़ में बेची जा रही हैं।

एचपी डीलर केडी भारद्वाज ने शिकायत दर्ज कराई, जिसमें अवैध प्रक्रिया का आरोप लगाया गया है। उन्होंने जांच और टेंडर रद्द करने की मांग की है। अधिकारी ने कहा कि कंपनी के पास मेक इन इंडिया का प्रमाण पत्र है।

देहरादून। सर्वे आफ इंडिया में नक्शे छापने की प्लाटर मशीन की खरीद के नाम पर घपले के गंभीर आरोप लगाए गए हैं। सर्वेयर जनरल और चीफ विजिलेंस आफिसर को भेजी गई शिकायत में आरोप लगाया गया है कि यह खेल मेक इन इंडिया के नाम पर किया जा रहा है। जिसकी आड़ में महज दो करोड़ रुपए की 11 मशीनों को 5.42 करोड़ रुपए में बेचा जा रहा है।

यह शिकायत दिग्गज टेक कंपनी एचपी के डीलर वाइडप्रिंट सिस्टम्स एंड साल्यूशंस के सीईओ केडी भारद्वाज ने दर्ज कराई है। शिकायत के अनुसार मशीनों की खरीद के लिए जब प्री बिड मीटिंग आयोजित की गई थी, तब भी यह मुद्दा उठाया गया था। लेकिन, सर्वे आफ इंडिया के वरिष्ठ अधिकारियों ने ध्यान नहीं दिया।

वर्तमान में भारत में मेक इन इंडिया के तहत कोई भी कंपनी प्लाटर तैयार नहीं करती हैं। लेकिन, जब जेम पोर्टल में टेंडर आमंत्रित किए गए तो रेप्रोग्राफिक्स नाम की कंपनी ने जापान की कंपनी के साथ अपने अनुबंध के आधार पर यह शर्त स्वीकार कर ली। बाकी कंपनियां टेंडर में भाग नहीं ले पाईं।

शिकायत में आरोप लगाया कि जो कंपनी मेक इन इंडिया का दावा कर रही है, वह जापान की मूल निर्माता कंपनी की मशीन में सिर्फ एक छोटा पार्ट जोड़कर यह सब कर रही है।

जो कि पूरी तरह अवैध है। यही नहीं, एकमात्र प्रतिभागी होने के बाद 02 करोड़ रुपए के प्लाटर 5.42 करोड़ रुपए से बेचने की तैयारी कंपनी ने कर दी है।

शिकायतकर्ता केडी भारद्वाज ने कहा कि यह अनुबंध अगले कुछ वर्षों के लिए रहेगा। ऐसे में सर्वे आफ इंडिया को 8.8 करोड़ रुपए से अधिक का चूना लगाने की तैयारी की जा चुकी है।

उन्होंने सर्वेयर जनरल और चीफ विजिलेंस आफिसर से प्रकरण की गंभीर जांच कराने और टेंडर निरस्त करने की मांग की है।

वहीं, टेंडर प्रक्रिया की स्वीकृति से जुड़े सर्वे आफ इंडिया के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जिस कंपनी ने सफल प्रतिभाग किया है, उसके पास मेक इन इंडिया का प्रमाण पत्र है।

यदि यह गलत है तो शिकायतकर्ता को यह मुद्दा संबंधित सक्षम एजेंसी के समक्ष उठाना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्लाटर के उच्च दाम को लेकर उनके पास स्पष्ट जानकारी नहीं है। उनका काम टेंडर कमेटी की संस्तुति के बाद निर्णय करने का है।

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