
देहरादून में सहस्रधारा से पांच किमी ऊपर की ओर स्थित मजाडा गांव में बादल फटा तो लोगों के घर हिलने लगे। नींद खुली तो बाहर चीख-पुकार मची थी। सीटियां बजाकर और टॉर्च जलाकर लोग एक-दूसरे को सुरक्षित स्थान पर एकत्रित करने के लिए आह्वान कर रहे थे। जमाडा गांव के दीपू और जामा ने यह आपबीती सुनाई।
सहस्त्रधारा के ऊपर बसे गांवों मजाडा, चामासारी और जमाडा में बादल फटने से मची तबाही के बाद कई परिवार सुरक्षित स्थानों के लिए पैदल ही निकल पड़े। इस दौरान उनके साथ मौजूद छोटे बच्चों को घंटों तक भूखे रहना पड़ा और जान जोखिम में डालकर पहाड़ी रास्तों से गुजरना पड़ा।
जमाडा गांव की सुषमा, निशा और पूजा ने बताया कि रात में बादल फटने के बाद वे अपने पूरे परिवार के साथ घर छोड़कर भागे। इस दौरान उनका घर और खाने-पीने का सारा सामान मलबे में बह गया। उनके साथ नौ बच्चे भी थे जिन्हें पांच घंटे तक दूध नहीं मिल पाया।

भूखे बच्चे रास्ते भर दूध के लिए रोते-बिलखते रहे। भूख के साथ ही रास्ते भर जान का खतरा सता रहा था। महिलाओं ने बताया कि रात में बिजली कड़क रही थी और भारी बारिश हो रही थी जिससे पहाड़ी रास्तों पर पत्थर गिरने का खतरा था। ऐसे में जान बचाना बेहद मुश्किल था। घंटों की कड़ी मशक्कत के बाद वे किसी तरह सहस्त्रधारा तक पहुंच पाए।

इन परिवारों के साथ आए छोटे बच्चों के होंठ भूख से सूख गए थे और उनके चेहरे पर आंसू की लकीरें साफ दिख रही थीं। बच्चों को शायद यह समझ आ गया था कि अब उनके माता-पिता उन्हें दूध नहीं दे पाएंगे क्योंकि इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था।

जमाडा गांव की पूजा ने बताया कि वे किसी तरह अपनी जान बचाकर यहां तक तो पहुंच गए हैं लेकिन अब उन्हें नहीं पता कि वे अपने बच्चों को लेकर कहां जाएंगे। उनका बनाया हुआ घर पूरी तरह से टूट चुका है और भविष्य की राह अनिश्चित है। आगे क्या होगा, कहां जाएंगे कुछ पता नहीं।

रात करीब एक बजे जब पहली बार बादल फटा तो बाहर लोगों की चीख-पुकार मची थी। थोड़ी देर बाद बाहर का माहौल शांत हुआ तो लगा तबाही टल गई लेकिन तड़के करीब चार बजे फिर से घर की जड़ें हिलने लगीं। तब लोगों को लगा कि अब कुछ नहीं बचेगा। इसके बाद वे घरों से बाहर निकल गए। लोगों को सीटियां और टॉर्च जलाकर गांव में एक जगह एकत्रित किया गया।
